जैसा की आप सभी लोग शनि की साढेसाती से परिचय रखते है। शनि प्रत्येक राशी में ढाई वर्ष रहते है। शनि देव जब आकाश मंडल मे भ्रमण करते हुए, किसी भी व्यक्ति की जन्मराशी से बारहवें भाव में आते हैं तो व्यक्ति की साढेसाती शरु होती है, अर्थात् राशि से बारहवें भाव से शुरु होकर द्वितीय भाव तक शनि का प्रभाव रहता हैं। जब गोचर में शनि राशि से चतुर्थ या अष्ठम भाव में आते है तो ढईया शुरु होती हैं। सदैव साढेसाती का प्रभाव असुभ रहेगा ऐसा कहना तर्कसंगत नही होगा। साढेसाती या ढईया का प्रभाव शुभ होगा या अशुभ यह जन्मपत्रिका में शनि की स्थिती व उनके बलाबल पर व जन्मराशि के मित्र या शत्रु है इस बात पर निर्भर करता हैं, लेकिन जैसे ही व्यक्ति को यह पता चलता है कि उसके राशि पर शनि का प्रभाव साढेसाती या ढईया के रुप में शुरु हो गया है तो व्यक्ति घबराने लगता है। शनि सबसे मंदगामी ग्रह है, और एक राशि में ये ढाई वर्ष रहते है।
इस कारण एक राशि में इनके परिणाम बहुत लंबे समय तक देखने को मिलते है। शनिदेव कर्मशील और न्यायकर्ता है। इसलिए जो लोग मेहनत करते है। तथा कभी भी दूसरों को धोखा नही देते है। लालच नही करते है। उन्हें शनि की साढेसाती से भयभीत होने की तनिक भी आव्यशकता नही है। इसके विपरीत जो लोग अपने आप को भगवान मानते हैं व अपने बताए हुए उपाय से ही भला होगा ऐसा कहते है उन्हें शनि देव दंड भी देते हैं। बाबा पुराण इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। ऐसे लोगो को 3 अगस्त तक तो राहत मिलेगी परन्तु उसके बाद परिणाम और भी भयावह हो जऐगें।
शनि हमारे ग्रह मंडल में सबसे कठोर ग्रह माने जाते है। जो राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की काबलियत रखते है। प्राचीन काल में तो हमारे ऋषि मुनि अपने जीवन में साढेसाती आने का इंतज़ार करते थे। जो 30 साल में आती है। साढेसाती में व्यक्ति का मन सिर्फ भजन कीर्तन में व्यतीत होता हैं जिससे गत जीवन में किये गए पाप समाप्त हो जाते है व मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
15 नवम्बर 2011को शनिदेव अपनी उच्च राशि में प्रवेश किया । यानि तुला राशि में उन्होंने प्रवेश किया । इसी कारण साढेसाती कन्या, तुला और वृचिक राशि वाले व्यक्ति पर रहेगी। शनि देव दंड देते है। मेहनत ,लग्न और इमानदारी व् सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों को पुरुस्कृत भी करते है।
ग्रहकलेश ,मन मुटाव ,कारगार ,लोहे सम्बंधित वस्तुओ से पीड़ा ,शारीरिक कष्ट ,निराशा,छोटे तबके के लोगो से कष्ट और नुक्सान ,दुख यह सभी परिणाम शनिदेव के कारण ही मिलते है। 16 मई से 3 अगस्त तक शनि पुन: कन्या राशि में ही रहेगे। इस दौरान मिथुन राशि वालो को प्राप्त हो रही सुख-सुविधाओं में कमी आएगी। जीवनयापन हेतु जन्मस्थान से दुर जाना पड सकता है। माता को कष्ट या माता के साथ वैचारिक मतभेद होगे। प्रतियोगी परिक्षओ में सफलता मिलेगी। सिंह राशि वालो के बनते हुए काम जो किसी कारणवश रुक गए थे वे बन जाऐगे, कन्या राशि वाले धन लाभ अपेक्षकृत सीमित मात्रा में होगें, कोई मामला जो न्यायालय तक जा सकता हैं उसमें सुलह होगी। तुला राशि वालो को अनायास ही धन की हानि होगी, किसी नए प्रोजेक्ट में हाथ न डाने वरना घटा ही होगा। बुर्जगों व जो लम्बे समय से किसी बिमारी से जूझ रहे उनका विशेष ख्याल रखे यह समय उनके लिए हानि कारक हैं क्योकि शनिदेव उन्हें अपने साथ ले जाना चाहतें है। वृश्चिक राशि वाले व्यक्तियों को नवम्बर से जो कष्ट कारक समय शुरु हुआ था, यह समय उनके बचाव के उपाय की तैयारी करने के व्यतीत होगा, कोई पुराना प्रोजेक्ट जो रुका हुआ था। उसके शुरु होने का यह उचित समय है।
कन्या राशि के व्यक्ति पर साढेसाती उनके पैरो पर है। इस समय बुजूर्गो को अपनी सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस समय तीर्थ यात्रा पर न जाए क्योकि पैरों में कष्ट हो सकता है। मांसिक चिंताए बढेगी, किसी बात को लेकर अनायाश ही परेशान हो सकते है। धन का लाभ अपेक्षानुसार नही होगा। शनि के वक्री होन पर और भी बयह परिणाम बढ़ सकते है। जैसे – ग्रह –कलेश ,यात्रा में कष्ट ,निराशा ,परिणाम मिलने में देरी,धन सम्बन्धी हानि और शारीरिक पीड़ा परेशां कर सकते है।
तुला राशि के व्यक्ति इस समय साढेसाती के दूसरे पड़ाव से गुजर रहे हैं। शनि देव यहा से व्यक्ति के तृतीय, सप्तम व दशम भाव पर दृष्टिपात करेगें और इसके परिणाम कुछ इस तरह मिलेंगे । जैसे - सरकारी कार्यों में सफलता, धन प्राप्ति ,यात्रा में वृद्धि, सुख सुभिधा में वृद्धि, रुके हुए कार्य पुरे होंगे, बाधाए समाप्त होंगी। पिछले कई दिनों से चल रहे विवाद समाप्त होंगे। परन्तु शनि के वक्री होने पर ये परिणाम उलटे हो जाएगे। इसलिए उस समय आपको थोड़ी सी साब्धानी बरतनी होगी।
वृचिक राशि के व्यक्ति पर साढेसाती का प्रभाव सर पर रहेगा। साढेसाती का यह प्ररंभिक दौर हैं, साढेसाती का प्ररंभिक असर व्यक्ति के सिर पर होता हैं,परिणाम-कष्ट महसूस हो सकता है। मानसिक तनाव उत्पन हो सकता है। ग्रह कलेश , सर दर्द की परेशानी ,घर परिवार से दुरी, बनते कार्य अचानक बिगडने लगेगें । नौकरी में कष्ट यदि व्यवसाय करते हैं तो व्यवसाय में घाटा होगा। नौकरी छुटने या व्यवसायिक घाटे का कारण स्त्री हो सकती है (वृश्चिक राशि में चद्रमा नीच के होते है, ग्रहों में चद्रमा को स्त्री ग्रह माना गया है, और शनि वृश्चिक से द्वादश अर्थात शईया व बंधन स्थान पर होगे अत: महिला से सावधान रहें)।
शनि देव के इन सभी बुरे परिणामों से बचने के लिए धेर्य और सयम से कार्य करे । तथा किसी कार्य को जल्दबाजी न करे। कुछ भी करते समय पुन: विचार विमर्श कर ले।
शनि देव को प्रसन करने के लिए निम्न उपाय कर सकते है।
• किसी का भी निरादर न करे ।
• मन को शांत रखें, घमंड न करे ।
• शनिवार को सूर्यास्त के बाद मीठे तेल का दीपक पीपल के पेड के नीचे तथा शनिदेव के मंदिर में जलाये ।
• मंदिर में काला कपडा दान करे । सप्तधान चढावें। मंदिर में
चढाने से संबंधित वस्तुए शनिवार से पहले खऱीदे जितना चडाना हो उतना ही लेकर जाये वहा से सामन वापस न लाए ।
• शनिवार को बंदरों और काले कुत्ते को लड्डू ,काले चने खिलाये ।
• प्रदोष के व्रत रखे ।
• घोड़े के नाल का छल्ला अपनी मध्यमा में पहने । जरुरत मंद व्यक्तियों को दान दे ।
• शनिवार को लोहे का टुकड़ा बहते जल में डाले ।
• शनि चालीसा का पाठ करे।
• इस मंत्र की माला फेरे-
• मजदुर वर्ग और गरीब वर्ग के लोगो का सम्मान करे और उनकी मदद करे ।